आखिर क्‍यों बरसात के बाद सबसे अधिक फैलता है जॉन्डिस

आखिर क्‍यों बरसात के बाद सबसे अधिक फैलता है जॉन्डिस

डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी

पीलिया या कहें जॉन्डिस यूं तो किसी भी मौसम में लोगों को अपना शिकार बनाता है मगर ज्‍यादातर इस बीमारी का प्रकोप बरसात के बाद ही नजर आता है। पीलिया हेपेटाइटिस ई श्रेणी के वायरस से होने वाली लीवर से संबंधित बीमारी है। बरसात के मौसम में पूरे देश में, खासकर उत्‍तर भारत में आंत्रशोथ और टायफाइड के साथ-साथ हेपेटाइटिस ई फैलने की आशंका बहुत अधिक होती है। बरसात के गंदे पानी में मौजूद विषाणु जब पीने के पानी में मिल जाते हैं तो इस पानी को पीने वाले व्‍यक्ति के शरीर में ये विषाणु पहुंचकर उसे हेपेटाइटिस ई पीलिया से ग्रस्‍त कर देते हैं।

बुजुर्गों को याद होगा कि दिल्‍ली में 1955 और 56 में हेपेटाइटिस ई के कारण पीलिया ने भीषण महामारी का रूप धर लिया था। उस समय के बाद से देश के अलग-अलग हिस्‍सों में पीलिया का प्रकोप दिखता रहता है।

हेपेटाइटिस का सामान्‍य अर्थ है लीवर में सूजन आ जाना। ये सूजन कई विषाणुओं के कारण हो सकता है। इनमें हेपेटाइटिस , बी, सी, डी और ई शामिल हैं। अभी तक मेडिकल साइंस इनमें से कई विषाणुओं से निपटने का तरीका नहीं खोज पाया है। हेपेटाइटिस ए और ई के विषाणु इंजेक्‍शन और रक्‍त के जरिये शरीर में जाते हैं।

पीलिया का अर्थ लीवर की सूजन के कारण खून में बिलुरुबीन का बढ़ जाना है जिसके कारण कभी कभी आंखों और त्‍वचार में पीलापन नजर आने लगता है और रक्‍त जांच में बिलुरुबीन की मात्रा ज्‍यादा दिखती है।

कारण एवं लक्षण

वैसे तो पीलिया के कई कारण हैं मगर हेपेटाइटिस ई इसके मुख्‍य कारणों में शामिल है। इस बीमारी में मरीज को पहले थोड़ा बुखार आता है, भूख कम हो जाती है, कमजोरी होती है, उल्‍टी आती है और पेशाब पीला हो जाता है। धीरे-धीरे पेशाब का पीलापन बढ़ जाता है। गर्भवती महिलाओं को इस बीमारी से बहुत अधिक खतरा रहता है। यहां तक कि जान जाने का जोखिम भी होता है। अगर गर्भवती महिला को यह बीमारी हो जाए और उसे तत्‍काल उचित इलाज न मिले तो लीवर सड़ सकता है और मरीज कोमा में जा सकती है। मरीज की किडनी फेल होने का खतरा भी हो सकता है। जिन महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और शरीर कमजोर होता है उनमें इसके संक्रमण का खतरा अधिक होता है।

हेपेटाइटिस ई के कारण करीब 30 फीसदी मरीजों को गंभीर पीलिया होता है। गंभीर होने का मतलब मरीज लंबे समय तक बीमार रहेगा, उसके पेट में पानी भर सकता है जो कि लीवर के बेकार होते जाने का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में मरीज की मौत का खतरा बढ़ जाता है। ये स्थिति आने पर मरीज को अस्‍पताल में भर्ती करके उसका इलाज करवाना जरूरी हो जाता है। कुछ मरीजों में तो बीमारी की तीव्रता ऐसी होती है कि बीमार पड़ने के चार से पांच दिन के अंदर दिमाग पर असर होने लगता है और मरीज कोमा में चला जाता है। इस स्थिति को एक्‍यूट लीवर फेल्‍यर कहते हैं।

बचाव

हेपेटाइटिस ई से बचाव का कोई टीका हाल तक उपलब्‍ध नहीं था मगर अब चीन के वैज्ञानिकों ने इसका एक प्रभावी टीका बनाने का दावा किया है। उनका कहना है कि 16 वर्ष और उससे ऊपर की आयु के लोगों पर एचईवी 239 नामक यह टीका बेहद प्रभावशाली साबित हुआ है। वैसे विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने यह तो माना है कि चीन में इस टीके का अच्‍छा प्रभाव देखा गया है मगर साथ ही यह भी कहा है कि हेपेटाइटिस ई से लड़ने में इस टीके के योगदान को रेखांकित करने लायक डाटा अभी उपलब्‍ध नहीं है। यानी फ‍िलहाल लोगों को इस वायरस से बचाव पर ही अपना ध्‍यान केंद्रित करने की जरूरत है। वैसे हेपेटाइटिस बी का टीका देश में उपलब्‍ध है और सर्वसुलभ भी है। हेपेटाइटिस ई से बचाव के लिए ये जरूरी है कि बरसात के मौसम में हम पीने के पानी की गुणवत्‍ता पर ध्‍यान दें। ऐसी सावधानी सिर्फ आम लोगों को ही नहीं बल्कि समाज के हर स्‍तर पर रखनी होगी। पानी आपूर्ति करने वाली एजेंसियों को तो विशेष निगरानी करनी चाहिए। इस मौसम में आरओ के पानी को भी उबालकर पीएं ताकि हेपेटाइटिस ई का विषाणु हमें प्रभावित न करें।

(डॉक्‍टर अनिल चतुर्वेदी की किताब फैमिली हेल्‍थ गाइड से साभार। आलेख में कुछ समसामयिक बदलाव किए गए हैं।)

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